इस दुनिया में 2 श्रेणी के दुराचारी पाये जाते है- कमजोर एवं कपटी। दोनों में मुख्य अंतर यह हैं कि कमजोर व्यक्ति अधिकांशतः स्वयं को या अपने संबंधियों को हानि पहुंचाते है किन्तु कपटी लोग दूसरों को बर्बाद करने का प्रयास करते रहते है। कमजोर दुराचारी अपने किये बुरे कार्य एवं उसका परिणाम दोनों जानते है किन्तु वे अपनी लत से मजबूर होते है एवम गलत कार्यो में लिप्त रहते है। वे अपने बुरे कार्यों को स्वीकार भी करते है एवं किन्तु उसके औचित्य पर कोई तर्क नहीं देते।
किन्तु इसके विपरीत कपटी लोग व्यवस्थित रूप से समाज में व्यवधान उत्पन्न करने एवं दूसरों के विनाश की योजनाएं बनाते रहते है एवं उसका प्रचार प्रसार भी करते है। ये लोग सत्य और सद्कर्मों को को बदनाम करने के लिए विभीन्न प्रकार से कुशलता पूर्वक विसंगत तर्क देते रहते है। और तो और ये लोग गोलमोल बातें कर, तथ्यों को तोड़मरोड़ कर दुश्चरित्रों और अधार्मिक व्यक्तित्वों का महिमामंडन भी करते रहते है।
यहाँ कुछ इसी तरह के वक्तव्य प्रस्तुत है जो इस तरह के कार्यों में लिप्त लोगों द्वारा प्रचारित किये गए है, जिसे तथाकथित विद्वान एवम अभिजात्य वर्ग भी समर्थन देता है:
- श्री राम द्वारा सीता का त्याग एक त्रुटिपूर्ण निर्णय था।
- महाभारत के भयानक युद्ध को भड़काने का श्रेय श्रीकृष्ण को जाता है। अगर उन्होंने गंभीरता पूर्वक पांच गांवों को पांडवों को देने की योजना को क्रियान्वित किया होता तो इस युद्ध से बचा जा सकता था।
- पांडवों ने धोखाबाजी से युद्ध जीता था।
- अर्जुन का चरित्र एक प्रतिष्ठा लोलुप व्यक्ति जैसा था, जिसने धोखेबाजी एवम गलत तरीके से कर्ण का वध किया था।
- कुन्ती ने स्वयं की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए नवजात कर्ण का त्याग किया था।
- द्रौपदी द्वारा कर्ण से विवाह न करने एवम उसे सूतपुत्र संबोधित करना गलत था।
- द्रौपदी द्वारा पांडवों से विवाह करने पर उसे पछतावा था और यथार्थ में वह कर्ण से विवाह करने की इच्छा रखती थी।
- शिवाजी एक दिग्भ्रमित योद्धा थे जिन्हें उचित शिक्षा नहीं दी गयी थी।
- राणा वंश द्वारा राजपूतों का शोषण किया गया था इसलिए उन्होंने राणा के विरुद्ध अकबर के साथ संधि की थी।
- विजय नगर साम्राज्य के पतन का कारण उनका अभिमान और आपसी फूट थी जिसकी वजह से एकजुट मुस्लिम शासकों ने उनका विनाश कर दिया।
- अंग्रेजों को सहायता भारतीय राजाओं से ही मिली, उन्हें भारत की बर्बादी के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।
इसके अतिरिक्त दुष्ट व्यक्तित्व अक्सर उन लोगों की सराहना करते हैं जिन्होंने जीवन में केवल तिरस्कार अर्जित किया है:
-दुर्योधन के परिवेश ने उसे गलत कार्य करने के लिए मजबूर किया; वह केवल अपने परिवेश का शिकार था।
-द्रौपदी ने अभद्र एवम अपशब्दों द्वारा कर्ण को अपमानित कर विवाह करने से इंकार किया और यह बुरा वर्ताव ही उसके वस्त्र हरण का कारण बना।
-दुःशाशन अपने भाई के पति पूर्णतः निष्ठावान था और उसने केवल अपने भाई के आदेशों का पालन किया, जिसे समाज ने गलत ठहराया।
-रावण ने कभी किसी स्त्री का बलात्कार नहीं किया, उसका सबसे बड़ा प्रमाण उसके द्वारा सीता की पवित्रता को खंडित न किया जाना है।
-अंग्रेजों ने मुख्यतः भारत का विकास ही किया। उन्होंने भारत को रेलमार्ग, उच्च शिक्षा अंग्रेजी भाषा और आधुनिक सभ्यता प्रदान की।
-अरबी, पारसी और मुगलों ने भारतीय उपमहाद्वीप में विविधता तथा संस्कृति का योगदान दिया। हाँ! उन्होंने अवश्य कुछ मंदिरों को तोड़ा किन्तु वह धार्मिक अशिहिष्णुता की वजह से नहीं था और इसका प्रमाण यह है कि आज भी अनेक प्राचीन मंदिर भारत में है। अगर उन्हें तोडना होता तो वे प्रत्येक मंदिर को अपने शासनकाल में ही शक्ति का उपयोग कर तोड़ चुके होते।
और इसी तरह अनेकों तर्क दिए जाते है। किन्तु इस तरह के वक्तव्य किसी भी प्रकार से तथ्यों की यथार्थता को प्रकट नहीं करते अपितु लोगों के भ्रष्ट दृष्टिकोण की सत्यता को उजागर करते है। यहाँ तक की स्वयं महाभारत में भी शिशुपाल द्वारा ऐसी दूषित मनोदशा का उदाहरण मिलता है। युधिस्ठिर महाराज द्वारा श्री कृष्ण को अग्र पूजा का सम्मान दिया जाना उसे रास नहीं आया इसलिए उसने भरी शभा में श्रीकृष्ण को अपमानित करने के लिए उनपर अनेकों अपशब्दों का प्रहार किया। स्वयं भीष्म ने श्रीकृष्ण के अनेकों दिव्य कार्यो के बारे में बतलाकर शिशुपाल को श्रीकृष्ण के महान व्यक्तित्व के बारे में समझाया किन्तु उसने इसे अस्वीकार ही नहीं किया, अपितु उन सारे कार्यों को पूर्णतः भ्रष्ट परिप्रेक्ष्य से सबके सामने प्रश्तुत भी किया। उसकी भ्रांत धारणा के अनुसार कृष्ण द्वारा रुक्मणी का अपहरण का कारण रुक्मणी का शिशुपाल को नापसंद किया जाना तथा कृष्ण को प्रेम करना नहीं था, अपितु यह केवल कृष्ण की धूर्तता थी। उसी तरह श्री कृष्ण ने किसी पर्वत को नहीं उठाया था अपितु वह मिटटी का एक छोटा सा टीला था। और तो और कृष्ण ने कंश का वध छल से किया यद्यपि वह कंश ही था जिसने कृष्ण को मारने के लिए उस स्पर्धा का आयोजन किया था। और यह सर्वविदित है कि जब शिशुपाल ने अपनी सीमा पार कर दी तब उसे उसका फल प्राप्त हो गया।
शिशुपाल की यह विरासत आज भी फल फूल रही है। लोग ऐसा क्यों करते है? क्या वे अनजान है? या दंभी है? निश्चित ही इसके अनेक उत्तर मिल सकते है किन्तु आधारभूत रूप से देखा जाय तो इन लोगों में शिशुपाल की मानसिकता ही पायी जाती है जो बार बार सत्य को झुठलाती, अपमानित करती एवम बुराई को बढ़ावा देती है।
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